इस शरीर से जो भी हम कर पा रहे है यह सारा कुछ परमात्मकी लीला है
7 Apr, 2014
Ref: नियम लागु कराने वालो को ही नहीं मालूम कि वास्तव मे नियम क्या है
http://www.rtifoundationofindia.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE-%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%81-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%82%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BF-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5-%E0%A4%AE%E0%A5%87
Comment: भगवानकी लीला है ये अगर कीसी मनुष्यको ज्ञात हो जाये सचमे उसे सत्यका ज्ञान हो जाता है ये लीला बताते है कृष्णकी पर हयाती (ज़िंदगी या जीवन संबंधी; प्राण संबंधी) मे जो है ये सारा संसार हाल अभी याने जो हमारा शरीर और इस शरीर से जोभी हम कर पा रहे है या कर रहे या कार्य हो रहे है यह सारा कुछ परमात्मकी लीला है यह जीसे ज्ञान होजाता है उसे भी मिल जाते है परमात्मा और द्रष्टा बन जाता है इस लीला रूपी संसारका अपने जीवनका पर इसके लीये अभ्यास है एक राम जो हमार मन-वाणी दुसरे राम है श्वास जो धट घट व...्यापक है तीसरे राम सर्जनहारा याने शिवम् अस्तु सर्व जगत है और चौथे राम है न्यारे जो सबसे उपर जो अपने श्वास को ले जाके सदाके लीये बैठादे अपने मस्तिकमे जीतेजी जिससे हो जाता है साक्षात अनुभव | Learning by Direct Experience नहीतो यह श्वास इन्सान जब मरजाता है तब तो चार घन्टे उनका श्वास रहता है इस देह मे और भगवान साक्षात मील ने भी आते है पर जैसे आज जी रहा है मनुष्य वास्तव से परे अपनी भ्रामक दुनियामे मरनेके समयभी यही हाल रहते है और कहते है परमात्मा सबको सद्बुध्धिदे जबकी परमात्माही है सबकुछ हमारे जीवनका अस्तित्व रूवे रूवे, रोम-रोम में समाया है वही है वास्तविकता हमारा होना यह है सच और बाकी उस जगदीश्वरकी लीला जो हाल आज अभी चल रहा है हमारा आपका सारे विश्वका सच । जै गुरुदेव तुम्हारे चरणोमे कोटी कोटी वंदन गुरुवे जो सिर्फ मतीमे ज्ञानके रूपमेही दर्शन देते है और जो विश्वके सारे शरीरोमे एक है या यु कहे पूरे अखिल ब्रह्मांडमे है एक ।
व्यापक सब घट आत्मा जाको आदि ना अंत सो मेरे उर नीत बसे जै जै गुरु भगवंत जाको गावत वेद नीत अकल अखंद अनंत सो मेरो नीज अत्मा जै जै गुरु भगवंत ।
Name: Asok Sachde
Email id: sachdechetana@yahoo.in
We could hardly understand what is being said. Does any reader have any idea?
EDITOR