उच्च न्यायालय में एक मामले की पैरवी के लिए कमिटी द्वारा मात्र 500 रूपये की सहायता दी जा रही है
7 Feb, 2014श्री मनमोहन सिंह ,
प्रधान मंत्री ,
भारतीय गणतन्त्र,
नई दिल्ली,
महोदय,
कानूनी सहायता और आवंटित राशि का उपयोग
भारत सरकार ने, निर्धन व्यक्ति न्याय से वंचित न हो इस लक्ष्य को लेकर, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम बनाया है जिसकी धारा 6 में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण व धारा 8 ए में उच्च न्यायालय विधिक सेवा कमिटी के गठन का प्रावधान है| इन कमेटियों के जरिये सरकार वंचित श्रेणी के लोगों को विधिक सहायता उपलब्ध करवाने का दावा करती है और झूठी वाहीवाही लूटती आ रही है|
इस विषय में ज्ञात हुआ है कि बहुत से उच्च न्यायालयों के स्तर पर तो स्वतंत्र रूप से अलग से कमेटियों का गठन ही नहीं हुआ है| यहाँ तक की आपकी नाक के नीचे दिल्ली राज्य में अलग से उच्च न्यायालय विधिक सेवा कमिटी कार्यरत नहीं है तथा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ही यह कार्य देख रहा है| इससे भी अधिक दुखदायी तथ्य यह है कि उच्च न्यायालय में एक मामले की पैरवी के लिए कमिटी द्वारा मात्र 500 रूपये की सहायता दी जा रही है जबकि स्वयम सरकार अपने एक एक मामले के लिए वकील के उपस्थित न होने पर भी लाखों रूपये पानी की तरह बहा रही है| वास्तविकता की ओर दृष्टि डालें तो 500 रूपये में तो डाक, टाइपिंग , फोटोस्टेट के खर्चों की भी प्रतिपूर्ति तक होना मुश्किल है|
सरकार के कार्यकरण में पारदर्शिता और शुचिता को बढ़ावा देने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया है और इन कमेटियों से भी अपेक्षा ही कि वे अपना सम्पूर्ण हिसाब-किताब वेबसाइट पर सार्वजनिक दृष्टिगोचरता में रखें किन्तु शायद ही किसी कमेटी ने इस अपेक्षा की पूर्ति की है और निहित हितों के लिए उनके कार्य गुप्त रूप से संचालित हैं – जनता का धन खर्च होने के बावजूद जनता को इस धन के उपयोग से अनभिज्ञ रखा जा रहा है| आप असहमत नहीं होंगे कि अपारदर्शिता भ्रष्टाचार व अनाचार की जननी है| ज्ञात हुआ है कि पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा कमिटी को चालू वर्ष में कुल 52,93,360 रूपये का बजट आवंटन हुआ है जिसमें व्यावसायिक एवं विशेष सेवाओं के लिए मात्र 50,000 रूपये का प्रावधान है जोकि आवंटित बजट के 1% प्रतिशत से भी कम है| शेष भाग वेतन व कार्यालय खर्चों के लिये आवंटित है | मेरे विचार से अन्य विधिक कमेटियों की स्थिति भी इससे ज्यादा भिन्न नहीं है| यह भी ध्यान देने योग्य है कि निर्धन लोगों को इतनी छोटी सी राशि बांटने के लिए वकीलों के अतिरिक्त 12 कार्मिकों का दल लगा हुआ है जिस पर बजट का 99% खर्चा हो रहा है| इस प्रकार कमिटी निर्धनों की बजाय कार्मिकों की ज्यादा आर्थिक सहायता कर रही है |
मेरे विचार से मिथ्या प्रचार व सस्ती लोकप्रियता के लिए यह न केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी है बल्कि निर्धन लोगों को कानूनी सहायता की बजाय उनके साथ एक क्रूर मजाक किया जा रहा है| अत: यह नीति बनायी जाये कि विधिक कमिटी के बजट का न्यूनतम 75% भाग निर्धनों को सहायता उपलब्ध करवाने के लिए उपयोग हो और इसके लिए इतना ज्यादा स्टाफ रखने के भी कोई आवश्यकता नहीं है| आरंभिक चरण में आप इसे 25% से प्रारम्भ कर 3 वर्षों में इस लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं| स्टाफ खर्चे के भारी बोझ से छुटकारा पाने के लिये आवेदन एवं स्वीकृति / पुनर्भरण कार्य को ऑनलाइन कर दिया जाए व वकीलों को उनके खाते में सीधे ही जमा करने की परिपाटी का अनुसरण किया जाए जिससे पक्षपात व भ्रष्टाचार पर नियंत्रण में भी सहायता मिलेगी|
इस प्रसंग में आप द्वारा की गयी ठोस कार्यवाही को जानने की मुझे उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी|
सादर ,
भवनिष्ठ
मनीराम शर्मा