अगर राज्य सूचना आयोग की सुनवाई ऑनलाइन शुरू नहीं हुई तो आरटीआई कानून खत्म हो जाएगा
12 May, 2020सूचना अधिकार कट्टा (मंच), जो कोरोनवायरस के फैलने के बाद बंद हो गया था, एक ऑनलाइन कट्टा (मंच) के रूप में फिर से खुल गया। पहली ऑनलाइन मीटिंग 30 अप्रैल को हुई और इसमें 14 लोगों ने भाग लिया। 7 मई को आयोजित दूसरे दौर में लगभग 60 लोगों ने भाग लिया।
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी 30 अप्रैल को हुई बैठक में उपस्थित थे। उन्होने सूचना आयोग की समग्र स्थिति और सूचना का अधिकार मे और आगे क्या किया जा सकता है, इसपर अपने सुझाव दिये! यदि सूचना का अधिकार कानून को पूर्व गौरव को फिर से प्राप्त कराना है, तो कार्यकर्ताओं को सूचना आयोग और सरकार के साथ संवाद करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना आयोग को तंत्रज्ञान का उपयोग करना चाहिए और कार्यकर्ताओं को ऐसा करने के लिए सूचना आयोग को लिखना चाहिए। उस संबंध में, यह निर्णय लिया गया कि सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं को राज्य के सभी सूचना आयुक्तों को पत्र भेजकर अपने विचार व्यक्त करने चाहिए। इसके बाद केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी सहित कई कार्यकर्ताओं ने राज्य सूचना आयोग को पत्र भेजे।
7 मई को आरटीआई की बैठक में शैलेश गांधी,महाराष्ट्र राज्य के पूर्व सूचना आयुक्त विलास पाटिल, महाराष्ट्र सामान्य प्रशासन विभाग के पूर्व प्रधान सचिव महेश झगड़े, दिल्ली स्थित कार्यकर्ता लोकेश बत्रा और दिल्ली के अधिवक्ता दिव्य ज्योति जयपुरीयार भी शामिल थे।
प्रारंभ में मैंने सूचना का अधिकार कट्टा (मंच) का उद्देश्य और ऑनलाइन मंच क्यों शुरू किया गया - इस संबंध में अपनी बात रखी । संवाद या बातचीत बहुत सारे प्रश्नों को हल कर सकती है। लेकिन अक्सर बातचीत शुरू करने के तरीके के बारे मे समस्याएं होती हैं। मैने उम्मीद जताई कि अगर सभी ने मिलकर काम किया तो हम सफल होंगे। मैंने यह भी कहा कि कट्टा के माध्यम से आयोग और राज्य सरकार के सामने नागरिकों के मुद्दों को उठाने का प्रयास किया जाएगा।
शैलेश गांधी ने पिछले मंच मे कीए गए अपील अनुसार सूचना आयोग को पत्र लिखने वालों को बधाई दी। हालांकि, गांधी ने अफसोस जताया कि जिन लोगों ने इस तरह के पत्र लिखे, उन्हें आयोग से कोई जवाब नहीं मिला। आयोग से की गई मांग सार्वजनिक थी। इसमे कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं था, यह मांग आयोग अपनी सुनवाई में तंत्रज्ञान का उपयोग करे इसके बारे मे थी। इसके बावजूद, आयोग ने पत्र का जवाब देने का शिष्टाचार नहीं दिखाया। उन्होने डर जताया कि अगर आयोग की सुनवाई ऑनलाइन शुरू नहीं हुई तो आरटीआई कानून खत्म हो जाएगा। गांधी ने यह भी कहा कि चूंकि आरटीआई अधिनियम नागरिकों से सीधे संबंधित है, इसलिए यह सूचना आयोग का काम है कि वह न केवल सुनवाई करे बल्कि नागरिकों का सम्मान भी करे। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना आयोग के साथ विभिन्न मुद्दों पर बातचीत करने का प्रयास किया जाना चाहिए और कार्यकर्ताओं को इसके लिए एकजुट होना चाहिए।
राज्य के पूर्व सूचना आयुक्त विलास पाटिल ने भी कहा कि अगर इस तरह से बातचीत के लिए कोई प्रयास किया जाता है, तो वह भी मदद के लिए तैयार हैं। उन्होने यह भी कहा की जब वे सूचना आयुक्त थे, तब नागरिकों के पत्रों का उत्तर दिया जाता था। अगर अभी जबाब नहीं दिया जा रहा है, तो इसके कारणों को ढूंढना होगा। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल मे तंत्रज्ञान के उपयोग के बारे में आयोग को लिखा था।
महेश झगड़े ने कहा कि सूचना आयोग और राज्य सरकार के बीच समन्वय के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। अक्सर सरकार और आयोग कुछ करना चाहते हैं।लेकिन चीजों को सही तरीके से सूचित नहीं किया जाता, या उन्हें इसके साथ आने वाली कठिनाइयों का रास्ता खोजने में पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में दोनों एजेंसियों को अवगत कराया जाना चाहिए कि इसके लिए क्या किया जाना चाहिए और यह बात सरकार आयोग के लिए कितना फायदेमंद है! अधिकारी नागरिकों के सवालों का जवाब नहीं देते क्योंकि उनके बीच एक धारणा है कि कोई भी उनसे कुछ भी नहीं पूछ सकता है। जवाब नहीं देना एक संस्कृति बन गई है और कई अधिकारी इस संस्कृति के शिकार हो गए हैं। इस संबंध में एक कानून है लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता है।
लोकेश बत्रा ने यह भी कहा कि यदि आप संवाद करते हैं, तो आपको अक्सर सफलता मिलेगी, आपको आयोग से सहयोग प्राप्त होगा। उन्होने यह भी बताया की उन्होने राज्य सूचना आयोग मे सुनवाई मे तंत्रज्ञान के उपयोग पर केंद्रीय सूचना आयोग को लिखा था और राज्य सूचना आयोग मे तंत्रज्ञान का उपयोग करने के लिए आग्रह किया था। केंद्रीय सूचना आयोग ने भी इसी तरह की बैठक की।लेकिन कई राज्य सूचना आयुक्तों ने विभिन्न कारणों को सामने रखने की कोशिश की और तकनीकी कठिनाइयों का हवाला दिया। हालांकि, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने कहा कि एक साधारण फोन कॉल द्वारा भी सुनवाई करना संभव है। अब कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे राज्य सूचना आयोग से इस मामले मे संवाद करे.
दिव्य ज्योति जयपुरियार ने भी विचार व्यक्त किया कि उन्होंने पूर्व में केंद्रीय सूचना आयोग के साथ बातचीत की थी और इसने बहुत कुछ हासिल किया था।
मिटिंग के अंत मे मैंने कहा कि अगर राज्य सूचना आयोग या सरकार के साथ इस तरह की बातचीत करनी है, तो कुछ कार्यकर्ताओं को उनके साथ संवाद करने की कोशिश करनी चाहिए, नागरिकों के विचारों से उन्हें अवगत कराना चाहिए और उनका पक्ष सुनना चाहिए! ऐसे कार्यकर्ताओं की एक टीम होनी चाहिए। उस संबंध में, इस बात पर सर्वसम्मति से सहमति बनी कि शैलेश गांधी, विलास पाटिल, महेश झगड़े और लोकेश बत्रा को ऐसी टीम में शामिल होना चाहिए क्योंकि उनके पास सूचना आयोग और सरकार से संवाद का अच्छा अनुभव है। चारों ने ऐसी टीम में काम करने के लिए सहमति भी व्यक्त की। तदनुसार,यह टीम अब नागरिकों के मुद्दों को सूचना आयोग और राज्य सरकार के सामने उठाएगी और एक अच्छा और सकारात्मक काम करने की कोशिश करेगी। टीम आने वाले समय में समयबद्ध तरीके से सिस्टम के साथ बातचीत करेगी और नागरिकों को किए गए प्रयासों के बारे में भी अवगत कराएगी । इस पर जानकारी भविष्य की बैठक में दी जाएगी ऑनलाइन कट्टा ( मंच) की एक अन्य विशेषता यह रही कि कुछ लोगों को शुरू में दोनों मंच में शामिल होने में कठिनाई हुई। हालांकि, थोड़े प्रयास से, सभी को पता चला कि मंच में भाग कैसे लिया जाता है। उसी तरह,इससे लोग सीमित रूप में और सामान्यत: महाराष्ट्र राज्य से कट्टा में शामिल होते थे, लेकिन पहले दो मंच के अनुभव से यह विश्वास पैदा हुआ कि अब देश के किसी भी हिस्से के लोग ऑनलाइन कट्टा ( मंच) में शामिल हो सकते हैं।
बैठक के अंतिम भाग में, प्रतिभागियों की सूचना के अधिकार से संबंधित व्यक्तिगत मुद्दों पर भी चर्चा की गई। अगली बैठक गुरुवार 14 मई को सुबह 10.30 बजे से 11.30 बजे आयोजित की जाएगी।बैठक मे शामिल होने के लिए नीचे दिए गये जानकारी का उपयोग करे.
विजय कुंभार
९९२३२९९१९९